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में घर का रहा ना घाट का अच्छा हुआ मे अपने परिवार को साथ नही लाया जितेंद्र नारायण त्यागी

जितेंद्र त्यागी ने की इस्लाम की तारीफ कहा ये तो ठीक हुआ जो में अपने परिवार  के साथ नही आया।

 

वसीम रिज़वी उर्फ त्यागी ने BBC को दिए अपने इंटरव्यू में कहा है- ”सनातन (हिन्दू) धर्म में आने की चुनौतियों का अंदाज़ा मुझे पहले से था. यहाँ लोग अपनाते नहीं हैं। सबसे पहली दिक़्क़त तो जाति और बिरादरी को लेकर होती है। अगर आपने कोई जाति ले ली तब भी उस जाति के लोग आपको स्वीकार नहीं करेंगे. मैंने अपने नाम में त्यागी जोड़ लिया इसका मतलब यह नहीं है कि त्यागी समाज बेटी-रोटी का संबंध बना लेगा. मेरा अतीत उन्हें अपनाने नहीं देगा. सनातन धर्म की ये दिक़्क़त हैं. यहाँ लोग अपनाते नहीं हैं. सातवीं सदी का मज़हब इस्लाम अगर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मज़हब बन गया तो इसकी कुछ ख़ूबियाँ भी हैं।जितेंद्र त्यागी कहते हैं, ”इस्लाम में घुलने मिलने का स्पेस है. आपने एक बार इस्लाम स्वीकार कर लिया तो आपके अतीत से उन्हें कोई मतलब नहीं होता है. वहाँ वैवाहिक संबंधों में समस्या नहीं होती है. इस्लाम में जाति को लेकर इस तरह अपमान नहीं झेलना होता है. मैं मरते दम तक सनातन में रहूँगा लेकिन मुझे पता है कि कोई भी बेटी-रोटी का संबंध नहीं बनाएगा. ऐसे में लगता है कि हम न घर के रहे न घाट के. जब इस्लाम में था तब भी चैन नहीं था और अब यहाँ हूँ तब भी अलग-थलग महसूस होता है.जितेंद्र नारायण त्यागी कहते हैं कि सनातन में आने के बाद उनका निकाह टूट गया. परिवार बुरी तरह से प्रभावित हुआ. वह कहते हैं, ”सच कहिए तो मैंने अपने जीवन में ज़हर घोल लिया. इसीलिए मैं पूरे परिवार के साथ सनातन में नहीं आया था. पहले मैं ख़ुद आकर देखना चाहता था. अच्छा हुआ कि पूरे परिवार के साथ नहीं आया।”

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