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मायड़ भाषा, मरू संस्कृति और मरू वनस्पति को सांगोपांग चित्रण करती है खेलरां रो खेल मनीष जोशी के राजस्थानी बाल कथा संग्रह का विमोचन

मायड़ भाषा, मरू संस्कृति और मरू वनस्पति को सांगोपांग चित्रण करती है खेलरां रो खेल मनीष जोशी के राजस्थानी बाल कथा संग्रह का विमोचन,

आईरा समाचार बीकानेर, 29 अप्रैल। बाल साहित्य लेखन अत्यंत चुनौतीपूर्ण होता है। इसके लिए लेखक मन को बच्चा बनकर सृजन करना पड़ता है। अच्छी बात है कि मनीष जोशी ने इस पेटे बेहतरीन सृजन किया है। यह मायड़ भाषा, मरू संस्कृति और मरू वनस्पति को सांगोपांग चित्रित करती है।
अजीत फाउंडेशन सभागार में बाल साहित्यकार मनीष जोशी की राजस्थानी बाल कथा संग्रह खेलरां रो खेल के विमोचन के दौरान अतिथियों ने यह उद्गार व्यक्त किए। मुख्य अतिथि कमल रंगा ने कहा कि राजस्थानी में बाल साहित्य लेखन की अपार संभावनाएं हैं। इस दिशा में अनवरत कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जोशी की पुस्तक बाल साहित्य के सभी पैमानों पर खरी उतरी है। कवि कथाकार राजेंद्र जोशी ने कहा कि खेल लेखन और बाल साहित्य सृजन अलग प्रकृति के कार्य हैं। इसके बावजूद जोशी ने दोनों क्षेत्रों में बेहतरीन कार्य किया है। इस संग्रह की प्रत्येक कथा एक सीख देती है। राजस्थानी साहित्यकार शंकर सिंह राजपुरोहित ने कहा कि जोशी को बालमन की समझ है। यह कथाएं बाल पाठकों को सहज तरीके से आकर्षित करती हैं। जनसंपर्क विभाग के सहायक निदेशक हरिशंकर आचार्य ने कहा कि बाल साहित्यकार द्वारा पुस्तकें लिखकर अपना कार्य किया जाता है। इन्हें बच्चों तक पहुंचाना हमारा कार्य है। डॉ. नमामी शंकर आचार्य ने पत्र वाचन किया और प्रत्येक कथा पर समालोचकीय टीप प्रस्तुत की। मनीष जोशी ने पुस्तक की सृजन यात्रा के बारे में बताया। इस दौरान चित्रकार योगेन्‍द्र पूरोहित का सम्‍मान किया गया। इसी पहले अतिथियों ने मां सरस्वती के चित्र के समक्ष पुष्प अर्पित किए और पुस्तक का विमोचन किया। जोशी ने पुस्तक की प्रथम प्रति राकेश जोशी और सतोष जोशी को भेंट की। खेल लेखक आत्मा राम भाटी ने स्वागत उद्बोधन दिया। कार्यक्रम का संचालन संजय पुरोहित ने किया। खेल लेखक संघ के अध्यक्ष मनोज व्यास ने आभार जताया। इस दौरान वरिष्‍ठ साहित्‍यकार डॉ. अजय जोशी, गिरीराज पारीक, नदीम अहमद नदीम राजाराम स्‍वर्णकार, गौरीशंकर प्रजापत, राकेश जोशी, राजकुमार जोशी, अशोक रंगा, महेश उपाध्‍याय, अशोक भाटी, राजेश व्यास, कमल व्‍यास सहित अनेक साहित्य प्रेमी मौजूद रहे।

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