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राजस्थान में जाट समाज की राजनीति हासिये पर कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों में अभी कोई भी प्रदेश स्तर का स्वीकार्य नेता नहीं है।

राजस्थान में जाट समाज की राजनीति हासिये पर

आईरा एडवोकेट मोहबत अली बीकानेर कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों में अभी कोई भी प्रदेश स्तर का स्वीकार्य नेता नहीं है।
बिखराव के लिए कौन है जिम्मेदार
देश की आज़ादी में राजस्थान के जाटों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । आज़ादी के वक्त के बुर्जुग बताया करते थे कि कुम्भा राम आर्य को तत्कालीन राजा ने देश निकाले का आदेश दे दिया था, उस समय कुम्भा राम जी आर्य कई दिनों तक अपने दोस्तों के घरों में छुप कर रहे थे, वे आज़ादी के दीवाने थे !राजस्थान में यदि जातिगत वोटों की गणना की जाए तो सबसे अधिक जनसंख्या जाट समाज की ही है, लेकिन कितना अजीब इत्तेफ़ाक है कि आज़ादी के 76 साल बाद भी आज तक एक भी जाट नेता राजस्थान का मुख्य मंत्री नहीं बना है। ऐसा नहीं है कि जाटों में कोई योग्य नेता नहीं रहा हो लेकिन प्रदेश की सियासत ही कुछ ऐसी रही कि किसी भी जाट नेता को प्रदेश का मुख्य मंत्री नहीं बनाया जा सका।एक वक्त में बहुत बड़े बड़े धुरंधर नेता प्रदेश की सियासत में छाए हुए थे । परस राम मदेरणा, नाथू राम मिर्धा, राम निवास मिर्धा, डॉक्टर हरि सिंह चौधरी, शीश राम ओला आदि जाट नेता शीर्ष पर थे, बल राम जाखड़ और चौधरी देवी लाल जैसे राष्ट्रीय नेताओं ने भी राजस्थान से लोक सभा चुनाव लड़ा था लेकिन फिर भी राजस्थान में कोई जाट मुख्य मंत्री नहीं बन पाया ।राजस्थान में आज तक जय नारायण ब्यास, मोहन लाल सुखाडिया, बरकतुल्ला खान, हरि देव जोशी, जगन्नाथ पहाड़िया, शिव चरण दास माथुर, भैरो सिंह शेखावत, अशोक गहलोत और वसुन्धरा राजे सिंधिया ही मुख्य मंत्री बन पाए हैं।सन 1998 में राजस्थान प्रदेश में कांग्रेस की कमान परस राम मदेरणा के हाथ में थी लेकिन मुख्य मंत्री श्री अशोक गहलोत बने।लेकिन धिरे धिरे जाट समाज की सेकंड लाईन की लीडरशिप को आगे बढ़ाने का काम किया गया जाट राजनीति में राजेन्द्र चौधरी, बद्री राम जाखड़, हेमा राम चौधरी, हरीश चौधरी आगे आए, इसी वक्त नोखा के रामेश्वर डूडी भी प्रदेश स्तर की राजनीति करने लगे । भीड़ इकठ्ठी करने में रामेश्वर डूडी का कोई मुक़ाबला नहीं था । बीकानेर शहर में सन 2018 में राहुल गांधी की सभा करवाई गई, पिछले महीनों में नोखा में जसरासर में ऐतिहासिक मीटिंग की गई, लेकिन रामेश्वर डूडी को ब्रेन हेमरेज हो गया और आज वे कोमा में है ।जाट नेताओं में आपस में इत्तेफाक नहीं है, एक दूसरे की टांग खिंचाई होती है, बडे़ नेता भी ऐसा ही चाहते हैं । बद्री राम जाखड़ और परस राम मदेरणा की पोती दिव्या मदेरणा के बीच छत्तीस का आंकड़ा जग जाहिर है ।हरीश चौधरी के सामने जाट समाज के ही नेता खड़े हैं।गोविन्द सिंह डोटासरा हालांकि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं लेकिन उनको भी आगे बढ़ने से रोकने के लिए उनके सामने ही भाजपा ने दूसरे जाट नेता सुभाष मेहरिया को चुनाव मैदान में उतार दिया है। महिपाल मदेरणा के हस्र को दुनिया ने देखा है।भाजपा में भी पूरे चार साल सतीश पूनिया प्रदेश अध्यक्ष थे लेकिन चुनाव से एक साल पहले उनको हटा कर सी पी जोशी को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया।हालांकि भाजपा ने झुंझुनू के एक जाट नेता जगदीप धनखड़ को उप राष्ट्रपति बना दिया गया है। लेकिन संविधान के तहत राजनीति करने पर अंकुश लगा हुआ है।आज के हालात में कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों में एक भी जाट नेता ऐसा नहीं है जिसकी फॉलोइंग पूरे राजस्थान में हो ।हनुमान बेनिवाल निश्चित रूप से पूरे प्रदेश की सियासत करते हैं लेकिन उनके भी जगह जगह जाट नेताओं से टकराहट है ।हरीश चौधरी, दिव्या मदेरणा, ज्योति मिर्धा, रिछपाल मिर्धा आदि कई जाट नेता है जो उनका विरोध कर रहे हैं। पूर्व में प्रदेश के जाट नेता अपने अपने क्षेत्र में मुस्लिम समाज और दलित समाज को साथ लेकर चलते थे।परस राम मदेरणा, नाथू राम मिर्धा, राम निवास मिर्धा, डॉक्टर हरि सिंह चौधरी,शीश राम ओला आदि जाट नेता मुस्लिम समाज और मेघवाल समाज को अपने साथ रख कर अपने क्षेत्र की सफल राजनीति करते थे ।यह भी हकीकत है कि जाट समाज में हिन्दू मुस्लिम के बारे में कोई विवाद नहीं है और मूल रूप से जाट समाज को एक धर्म निरपेक्ष समाज माना जाता है। आज़ादी के 76 साल बाद एक मर्तबा तो जाट समाज के नेता को मुख्य मंत्री बनना चाहिए। लेकिन अभी प्रदेश में जाट नेताओं में आपस में कोई एकता हो, ऐसा दिखाई नहीं दे रहा है।आज के हालात में निकट भविष्य में राजस्थान प्रदेश में किसी जाट नेता के मुख्य मंत्री बन जाने के कोई आसार दिखाई नहीं दे रहे हैं। प्रदेश के जाट समाज को इस मामले में गंभीरता से विचार करने की सख़्त ज़रूरत है।

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