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सुचना के अधिकार संशोधन अधिनियम के नाम पर , आम जनता के जानने के अधिकार में कटौती

आईरा वार्ता  समाचार सुचना के अधिकार संशोधन अधिनियम के नाम पर , आम जनता के जानने के अधिकार में कटौती , लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ ,प्रस्तावित डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल (DPDPB), 2022 में आपत्तियां मांगने के लिए , हिंदी सहित दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं में भी , प्रारूप जारी करने ,,सुचना के अधिकार एक्टिविस्टों ने मांग उठाई कोटा 20 दिसम्बर केंद्र में बैठी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साहिब के नेतृत्व वाली सरकार , देश के नागरिकों को सच जानने के संवैधानिक अधिकार ,, सुचना के अधिकार अधिनियम में कटौती कर , देश के नागरिकों से सुचना का अधिकार छीनने के प्रयासों में हैं, जो देश के , लोकतान्त्रिक संवैधानिक व्यवस्थाओं के पक्षधर किसी भी व्यक्ति को मंज़ूर नहीं ,इसके खिलाफ देश के सुचना के अधिकार अधिनियम के एक्टिविस्ट सहित सभी समाज सेवियों पत्रकारों को एक जुट होकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाना , होगा ,,, देश भर में सुचना के अधिकार अधिनियम में और सरलीकरण करने के पक्षधर समाजसेवियों ने , आज यहां वर्चुअल आयोजित कॉन्फ्रेंस में इन मुद्दों पर , केंद्र सरकार को घेरते हुए ,एक स्वर में ,सूचना के अधिकार अधिनियम में रुकावट के लिए कठोरता लाने के बदले ,, सरलीकरण की मांग पर ज़ोर दिया ,, वर्चुअल सुचना के अधिकार अधिनियम कॉन्फ्रेंस में बोलते ,हुए ,, आर टी आई एक्टिविस्ट लेबर क्लस्टर की राजस्थान समन्वयक कोमल घनश्याम डोगरा ने कहा के , सुचना का अधिकार अधिनियम , पारदर्शी सिद्धांत , से जुड़ा हुआ है , इसमें कठोरता की जगह और शिथिलता होना ,, चाहिए ,, कोमल घनश्याम डोगरा ने कहा ,, ,
भारत सरकार ने 18 नवंबर 2022 को, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के द्वारा प्रस्तावित डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल (DPDPB), 2022 को जनता के सुझाव के लिए रखा है। वर्तमान में भारत सरकार ने नागरिकों को 17 दिसम्बर 2022 तक सुझाव भेजने का समय दिया था ,डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल (DPDPB) का ड्राफ्ट आम नागरिकों के डेटा को सुरक्षा प्रदान करने के मकसद से लाया जा रहा है। परन्तु वास्तव में यह उस मकसद के विपरीत जा रहा है । जैसाकि हम सभी जानते है कि निजता का अधिकार हमारी भारत के नागरिकों को मूल अधिकार बन चुका है जिसके तहत हर नागरिक के डाटा का संरक्षण किया जाना सरकार का दायित्व है। इसी मंशा के तहत यह कानून भारत सरकार द्वारा लाया जा रहा है परंतु कानून में ऐसे कई प्रावधान है जोकि सूचना के अधिकार कानून को समाप्त करने जैसे है, साथही व्यक्तिगत डाटा को भी सुरक्षित करने में पूर्णतय सक्षम नहीं है।
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल (DPDPB) को लाने से पहले लोगों के साथ व्यापक चर्चा ,संवाद व प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है । इसके लिए सरकार को इस पर अलग-अलग स्तर पर संवाद संवाद आयोजित कराने की व सुझाव को विभिन्न माध्यमों से भेजने की सुनिश्चित व्यवस्था की जानी चाहिए ।
इस संदर्भ में भारत सरकार से इन सभी बिंदुओं पर चर्चा करने व उचित कदम उठाने के लिए पत्र लिखा गया है यह पत्र सिविल सोसाइटी व प्रबुद्ध नागरिकों कोमल ने बताया कि उक्त वैचारिक , संघर्ष के लिए सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के भूतपूर्व न्यायाधीश, शिक्षाविद, वकील ,भूतपूर्व प्रशासनिक अधिकारी, प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल है कसी मांगों को शामिल किया गया है :
,, हिम्मत सच कहने के स्वतंत्र मंच संयोजक ने , कोमल का समर्थन करते हुए काह के , पारदर्शी और समावेशी सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया: ही देश को , सुचना के अधिकार के माध्यम से , नौकरशाहों , मंत्रियों , विधायकों , सांसदों , पंच , सरपंच , वार्ड पार्षद के कृत्यों पर निगरानी रखने के लिए ज़िम्मेदार बनाता है , वरिष्ठ पत्रकार चिंतक , लेखक डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल ने कहा के किसी भी सरकारी , गैर सरकारी व्यवस्था में , क्या कुछ हो रहा है , आमद ,खर्च गुणवत्ता व्यवस्थाएं क्या है , सभी कुछ , आम जनता को जानने का संवैधानिक अधिकार है , आम जनता को इन अधिकारों से दूर रखना, , लोकतंत्र का गला घोटने जैसा है , ह्यूमन रिलीफ सोसायटी के , एडवोकेट अख्तर खान अकेला ने कहा , के ेएक बढे संघर्ष के बाद , आम जनता से चुनी हुई सरकार द्वारा ,, किये गए कार्यों के आमद , खर्च ,गुणवत्ता ,, व्यवस्थाओं की प्रोसिडिंग , नियुक्तियों में गड़बड़ी छुपाने की अंग्रेज़ो की गुलाम संस्कृति से आज़ादी दिलवाते हुए , सभी के प्रयासों से आधा अधूरा ही सही , सुचना का अधिकार हांसिल किया था , लेकिन अब , इस आंदोलन को चलाने वालों में ,से एक ज़िम्मेदार , अन्ना हज़ारे , केंद्र सरकार की गोद में मुंह छुपा कर बैठे हैं , ऐसे ,में आम जनता के स्वतंत्र अधिकारों को धक्का लगा है , जो अधिकार, आपात स्थिति में भाजपा के नेता , वर्तमान प्रधानमंत्री महोदय , ,गृहमंत्री ,, अन्य मंत्री ,, वरिष्ठ नेता , संघर्ष करके मांग रहे थे , आज यह लोग, भारत की जनता , को इस मामले में छूट पुट दिए गए ऐसे सुचना के अधिकार से भी वंचित कर देना चाहते हैं , ,, , आर टी आई एक्टिविस्ट मुन्ना खान सम्पादक अलफ़ाज़ टू डे , ने कहा के ,में कई सालों से , सरकारी सिस्टम में भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दों के मामले में सूचनाएं एकत्रित करने की कोशिशों में हूँ ,, लेकिन मुझे डराया , धमकाया जाता है , और सूचनाएं देने में आनाकानी की जा रही हैं , ,, सभी सदस्यों ने , वर्चुअल बैठक में , सुचना के अधिकार अधिनियिम को मज़बूत करने के , लिए प्रस्ताव पारित किया जिसमे
1.1 ड्राफ्ट बिल केवल MeitY वेबसाइट पर अंग्रेजी में जारी किया गया है। ,, इसे हिंदी भाषा में भी सरलीकरण करते हुए , आम आदमी के सुझाव के लिए जारी किया जाये ,, प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने का समय बढ़ाया जाना चाहिए। मसौदा विधेयक को अन्य भारतीय भाषाओं में जारी किया जाना चाहिए और परामर्श प्रक्रिया में व्यापक जुड़ाव के लिए इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के माध्यम से इसका व्यापक रूप से प्रचार किया जाना चाहिए क्योंकि यह सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है। 
1.2 MeitY द्वारा जारी नोटिस के अनुसार, प्रतिक्रिया/प्रस्तुतियों का सारांश सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं कराया जाएगा। जनता/अन्य हितधारकों से प्राप्त फीडबैक/टिप्पणियों का सारांश पीसीएलपी, 2014 के अनुरूप मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
1.3 MeitY वर्तमान में अपने ऑनलाइन पोर्टल पर केवल अध्याय-वार प्रतिक्रिया स्वीकार कर रहा है। जबकि फीडबैक जमा करने की प्रक्रिया को सभी नागरिकों के लिए आसान और सुलभ बनाया जाना चाहिए, जिसमें ऑफलाइन जमा करने के प्रावधान भी शामिल हों।
1.4 डीपीडीपीबी, 2022 का कई कल्याणकारी कानूनों और नीतियों पर प्रभाव पड़ने की संभावना है। पीसीएलपी, 2014 में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, मंत्रालय को जन आंदोलनों और नागरिक समाज संगठनों सहित सभी हितधारकों के साथ खुला परामर्श और इन मुद्दों पर काम करने वाले अभियानों के साथ जनसंवाद आयोजित करना चाहिए।
आरटीआई अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों पर आपत्ति : आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (i) (j) में कोई संशोधन नहीं किया जाना चाहिए। आरटीआई कानून महत्वपूर्ण कानून है जो आम नागरिकों को सूचना मांगने और सरकारी कार्यों में जवाबदेही और पारदर्शिता बनाए रखने का अधिकार देता है। इस महत्वपूर्ण खंड में संशोधन करने का कोई भी प्रयास पूरे आरटीआई के ढांचे को खत्म कर देगा। सरकार द्वारा सूचना के अधिकार और सभी भारतीय नागरिकों के निजता के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339

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