बर्थडे की हकीकत व इब्तिदा :मुफ्ती सद्दाम हुसैन क़ासमी बीकानेर
बर्थडे की हकीकत व इब्तिदा :मुफ्ती सद्दाम हुसैन क़ासमी
आईरा मोहम्मद अल्ताफ़ हुसैन बीकानेर पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्ल.की पैदाईश से करीब 600 साल पहले पैगंबर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का ज़माना था जिनके मानने वालो को ईसाई कहा जाता था अलबत्ता कुछ उनके मानने वाले आज भी दुनिया मे मौजूद है लेकिन पैगंबरो को भेजने वाले रब का यह उसूल व क़ानून है जिसका जिक्र आसमानी आखरी किताब कुरआन पाक मे किया गया है कि एक पैगंबर के दुनिया से रूखसत होने के बाद दूसरे पैगंबर की आमद के बाद सिर्फ उन्ही के पैगाम पर अमल किया जाता है अलबत्ता वो अहकाम अलग होते है जो दोनो में मुत्तफिक़ हो। आईरालिहाजा़ इन बातो को सामने रखते हुए जानते है कि बर्थडे की इब्तिदा ईसाईयों ने पैगंबर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बाद उनके यौमे विलादत को क्रिसमस के रूप मे मनाकर बर्थडे मनाने की शुरूआत की और नए रिवाज को जन्म दिया जिसका पैगाम पैगंबर हजरत ईसा ने भी नही दिया न ही उनपर नाजिल होने वाली आसमानी किताब इन्जील (बाइबल) मे दिया गया
बात अगर उनकी शरीअत की भी होती तो कुछ हद तक रास्ता बन सकता था लेकिन क्या किया जा सकता है कि अव्वल तो खुद उनकी शरीअत मे नही इसके अलावा जब दूसरे पैगंबर की आमद के बाद पहले पैगंबर के पैगाम की हद खत्म हो जाती है और दूसरे पैगंबर की बात मानना जरूरी हो जाता है न मानने वाला इस्लाम मे गुनहगार होता है तो इसकी गुंजाइश का रास्ता तो कहां सुराख भी नही निकलता। बर्थडे की शुरूआत जर्मन से “किन्डरफिस्ट” के नाम से हुई जो बाद मे केक पर मोमबत्ती रखकर मनाए जाने लगे और आज उसी केक को मुंह पर मलकर मनाया जाने लगा फिर बदलते जमाने के साथ आगे इसका तरीक़ा भी बदला जा सकता है खैर इसका तरीक़ा जो भी रहे लेकिन शरीअत (इस्लामी क़ानून) के मानने वालो को ऐसे फजूल कामों से परहेज करना चाहिए ।
बर्थडे को फिर क्या किया जाए:-
इंसान को फुजूल कामो के लिए पैदा किया ही नही गया फिर क्या फर्क है कि इंसान बर्थडे मनाए या कोई और डे। बर्थडे को इंसान खुशी का इजहार करके अपने रब का शुक्रगुजार बने और उस दिन अपने से कमजोर लोगो की मदद करके खुशी हासिल कर सकता है हालांकि इस्लाम व पैगंबर इस्लाम ने हर लम्हा इन कामो को करने का हुक्म दिया है लेकिन बर्थडे जैसे खास मौकों पर ऐसे काम करके अपनी यौमे विलादत को यादगार बनाया जा सकता है।