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राजस्थान में कांग्रेस पार्टी की हार के लिए कौन लोग हैं जिम्मेदार। घर को लगी है आग, किसी घर के ही चराग से ! ,

आईरा वार्ता ऑनलाइन न्यूज नेटवर्क बीकानेर राजस्थान

 

यदि टिकटों का सही वितरण होता तो बीकानेर जिले की सातों सीटों पर कांग्रेस की जीत हो सकती थी।  घर को लगी है आग, किसी घर के ही चराग से !

आखिरकार राजस्थान के मुख्य मंत्री श्री अशोक गहलोत साहब का मुख्य मंत्री की कुर्सी ने साथ छोड़ ही दिया  अशोक गहलोत जी को यह अक्सर शिकायत थी और उनको बार बार कहना भी पड़ता था कि ” मैं तो मुख्य मंत्री की कुर्सी छोड़ना चाहता हूं लेकिन यह मुख्य मंत्री की कुर्सी मेरा पीछा नहीं छोड़ रही है ।लो अब यह कुर्सी भी बेवफ़ा हो कर साथ छोड़ गई ।चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस पार्टी की हार हो गई है लेकिन यह हकीकत थी कि जनता राज्य में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनाना चाहती थी ? जनता को गहलोत सरकार की योजनाऐं पसन्द थी,जनता को अशोक गहलोत या सचिन पायलट से कोई नाराज़गी या परहेज़ नहीं था बल्कि सरकार में मौजूद मंत्रियों और विधायकों के प्रति भारी असंतोष और नाराज़गी थी ।यदि कांग्रेस पार्टी द्वारा मौजूदा विधायकों और मंत्रियों के टिकट काट दिए जाते और नए युवा वर्ग को टिकट दे दिए जाते तो संभवतः राजस्थान में सरकार कांग्रेस पार्टी की बन जाती ।बीकानेर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में सन 1980 से कांग्रेस डॉक्टर बी डी कल्ला को ही टिकट दे रही थी, इस चुनाव से पूर्व सभी सर्वे रिपोर्ट में हर किसी में बी डी कल्ला की हार को निश्चित माना जा रहा था और प्रत्येक रिर्पोट में यह हार भी बीस हजार वोट से अधिक की बताई जा रही थी मुख्य मंत्री के ओ एस डी लोकेश शर्मा ने भी ऐसी ही एक रिर्पोट अशोक गहलोत को छह महीने पहले ही सौंप दी थी लेकिन मुख्य मंत्री श्री अशोक गहलोत ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया ।कल्ला जी के समर्थकों का कहना है कि हिन्दुत्व की वजह से हिन्दू वोटों का धुव्रीकरण हो गया लेकिन राजनीति के जानकार इसे सही नहीं मान रहे हैं ।बी डी कल्ला ने इस चुनाव में अपने आपको सबसे बड़ा हिन्दू होने का दावा किया और ऐसे ही जगह जगह बयान जारी किए थे ।इसके अतिरिक्त बी डी कल्ला ने पिछले दो साल में मन्दिरों में विधायक कोटे का पैसा लगाने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी ।यह भी चर्चा है कि मुस्लिम तुष्टीकरण का कोई आरोप नहीं लगे, इसी उद्देश्य से किसी मुसलमान को यू आई टी चैयरमैन नहीं बनाया गया, किसी को भी प्रदेश में बड़ा पद नहीं दिया गया और किसी मुसलमान को कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष भी नहीं बनाया गया ।राजनीति के जानकार मानते हैं कि यदि बीकानेर पश्चिम क्षेत्र से कानू कल्ला के पुत्र कमल कल्ला जो राजस्थान प्रदेश सेवादल के उपाध्यक्ष हैं, को कांग्रेस पार्टी की टिकट दे दी जाती तो यह सीट कांग्रेस को आसानी से मिल सकती थी ।कोलायत विधानसभा क्षेत्र में भंवर सिंह भाटी का भारी विरोध जग जाहिर था ? कोलायत क्षेत्र में रॉयल्टी में हो रहे भारी भ्रष्टाचार से जिले के ट्रक ऑनर में व्यापक रूप से असंतोष था ।सन 2018 के जैसलमेर के तर्ज़ पर यदि रेवन्त राम पंवार जैसे किसी मेघवाल नेता को कांग्रेस पार्टी की टिकट दे दी जाती तो यह सीट भी कांग्रेस की झोली में डाली जा सकती थी ।खाजूवाला विधानसभा क्षेत्र में मंत्री गोविन्द राम का जबरदस्त विरोध था ? भ्रष्टाचार, परिवार वाद, मुस्लिम समाज का तिरस्कार और खाजूवाला और छतरगढ़ एरिया को अनुपगढ़ में शामिल करने के इश्यू को लेकर एरिया में विरोध की आवाज़ हर ओर से आ रही थी लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने अपने कानों में रुई ठूंस रखी थी, ” डोल बायरा” शब्द ने देहात के मुसलमानों को झकझोर कर रख दिया था ? क्षेत्र के मुस्लिम समाज ने इस शब्द को समाज के स्वाभिमान और अस्मिता को चुनौति देने के रुप में देखना शुरू कर दिया, यही नहीं इस एक शब्द की गूंज कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को भी सुनाई देने लगी थी लेकिन कांग्रेस नेतृत्व की जिद और हठधर्मिता ने इस परिस्थिति पर कोई ध्यान नहीं दिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस बैल्ट का क्षेत्र होने के बावजूद 17,000 से अधिक वोट से कांग्रेस की शर्मनाक हार हो गई ।खाजूवाला के मुस्लिम समाज ने भाजपा के प्रत्याशी डॉक्टर विश्वनाथ मेघवाल को ढोल बजा बजा कर वोट दिए ।यदि यहां भी टिकट बदल कर मदन गोपाल मेघवाल जैसे किसी शरीफ़ और संजीदा नेता को कांग्रेस पार्टी द्वारा टिकट दी जाती तो यह सीट भी आसानी से कांग्रेस पार्टी की झोली में डाली जा सकती थी ।बीकानेर पूर्व क्षेत्र में तो कोई चुनाव जैसा माहौल ही बन नहीं पाया था ? बीकानेर पूर्व क्षेत्र की जनता परिवर्तन करना चाहती थी, यदि इस मर्तबा कन्हैया लाल झवर को कांग्रेस पार्टी की टिकट दी जाती अथवा विश्वजीत सिंह हरासर या किसी पंजाबी समाज या ब्राह्मण समाज के नेता को टिकट दी जाती तो यह सीट भी कांग्रेस पार्टी की झोली में डाली जा सकती थी ।लूणकरणसर विधानसभा क्षेत्र में हालांकि कांग्रेस पार्टी ने डॉक्टर राजेन्द्र मूंड को टिकट दे दी लेकिन पूर्व विधायक वीरेन्द्र बेनीवाल निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में खड़े हो गए ।चर्चा है कि नॉमिनेशन के समय अशोक गहलोत स्वयं बीकानेर शहर में मौजूद थे और यदि वे वीरेन्द्र बेनीवाल को अपने पास बुला कर बात करते तो संभवतः बेनीवाल चुनाव नहीं लड़ते ।चर्चा है कि राजेन्द्र मूंड ऊपर से टिकट ले आए थे और उन्हें हरीश चौधरी का नजदीकी समर्थक माना जाता है ।बेनीवाल के विद्रोह की वजह से कांग्रेस को यह सीट गंवानी पड़ गई ।डूंगरगढ़ में मंगला राम गोदारा का पहले से विरोध जग जाहिर था, वह पहले दो बार चुनाव हार चुके थे ? यदि डूंगरगढ़ विधानसभा क्षेत्र में समझौते में यह सीट सी पी एम पार्टी के गिरधारी लाल मईया को दे दी जाती तो यहां भी जीत मिल सकती थी लेकिन यहां भी हठधर्मिता और ज़िद और गलत डिसिजन की वज़ह से नुक़सान उठाना पड़ गया राजनीति के जानकारों का मानना है कि राजस्थान में ऐसी पचासों सीट है जहां से कांग्रेस पार्टी की जीत हो सकती थी , सिवान में मानवेन्द्र सिंह के सामने अशोक गहलोत के बेहद करीबी माली समाज के पडिहार ने निर्दलीय चुनाव लड़ा जबकि अशोक गहलोत ने उन्हें एक आयोग का अध्यक्ष बना कर राज्य मंत्री का दर्जा दिया हुआ था ।यहां भी कांग्रेस पार्टी की इसी वजह से हार हुई ? कामां में मंत्री जाहिदा खान का भारी विरोध था लेकिन यह सब जानकर भी उन्हें कांग्रेस पार्टी की टिकट दी गई और वहां कांग्रेस की हार हुई ।चर्चा है कि पार्टी नेताओं के आपसी फूट और विरोध की वजह से गुर्जर बैल्ट में कांग्रेस उम्मीदवारों की हार हुई ।यह माना जा रहा है कि इस चुनाव में कांग्रेस की हार की वजह ख़ुद कांग्रेस पार्टी के नेता और आला कमान का कमज़ोर नेतृत्व है, जिसका खामियाजा पांच साल तक क्षेत्र की जनता को भुगतना पड़ेगा ?
फकत
सैय्यद महमूद
प्रधान संपादक
बीकानेर की आवाज़
बीकानेर ।

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