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सिंहासन एक,दावेदार दो कैसे फैसला हो सकता है अशोक गहलोत और सचिन पायलट का विवाद कैसे समाप्त हो सकता है

सिंहासन एक, दावेदार दो ? कैसे फैसला हो सकता है ?
अशोक गहलोत और सचिन पायलट का विवाद कैसे समाप्त हो सकता है ?
एक म्यान में दो तलवार नहीं आ सकती ?
मैं इतिहास का विद्यार्थी रहा हूं, इतिहास में हमने राज सिंहासन के लिए हुए खुनखराबा और राजनीति को पढ़ा है ? बेटे ने बाप को, भाई ने भाई को, बहन ने भाई को अपने रास्ते से हटाया है ? सम्राट अशोक ने अपने 99 भाइयों को औरऔरंगजेब ने अपने तीन भाइयों का कत्ल किया और अपने बाप शाहजहां को ता उम्र जैल में डाल दिया था , जबकि वह तो जबरदस्त धार्मिक और बहुत बड़ा धार्मिक आलिम था ? ओरंगजेब ने 39 साल तक देश में राज किया था ?
सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट और अशोक गहलोत के बीच कभी कोई विवाद या राजनैतिक कंपीटीशन नहीं रहा । वजह यही थी कि दोनों की राजनैतिक रणभूमि अलग अलग थी ? राजेश पायलट केन्द्र में राजनीति किया करते थे और अशोक गहलोत केन्द्र की राजनीति छोड़ कर राजीव गांधी के समय ही राजस्थान आ गए थे ?
अशोक गहलोत भी प्रारम्भ में राजीव गांधी के समय केन्द्र सरकार में राज्य मंत्री बने थे, लेकिन इनका टारगेट राजस्थान के सिंहासन पर बैठने का था ?
सन 1970-72 से ही मैं अशोक गहलोत को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं ! वे राजनीति के चाणक्य ही नहीं बल्कि जादुगर माने जाते हैं , राजनीति में उनकी तुलना प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और होम मिनिस्टर अमित शाह के बराबर की जाती है ?
आज से पचास साल पहले वे राजस्थान एन एस यू आई के प्रदेशाध्यक्ष बन कर जब बीकानेर आए थे ? भवानी शंकर शर्मा द्वारा बीकानेर में सजनालय में अशोक जी के लिए एक मीटिंग रखी गई थी उस मीटिंग में भीड़ तो मेरे ही दोस्तों की थी ? अशोक गहलोत ने राजनीति के मुकाम पर पहुंचने में बहुत मेहनत की है ?
राजस्थान में कांग्रेस पार्टी में बहुत बड़े बड़े दिग्गज नेता थे ? परस राम मदेरणा, हरि देव जोशी, नवल किशोर शर्मा, डॉक्टर हरि सिंह चौधरी, चन्दन मल वैद्य,राम निवास मिर्धा, शिव चरण माथुर, बल राम जाखड़, नाथू राम मिर्धा, शीश राम ओला, महिपाल मदेरणा आदि अनगिनत बड़ी बड़ी तोपें हुआ करती थी ?
अशोक गहलोत सन 1998 में इन सबको धीरे धीरे साईड लाईन करते हुए राजस्थान के मुख्य मंत्री बन गए ?
उस समय इन सब राजनीति के धुरंधर खिलाड़ियों के बीच सरकार चलाना और प्रदेश की राजनीति कर पाना कोई आसान काम नहीं था ? फर्स्ट टेन्योर में अशोक जी ने स्वयं ने कोई विभाग नहीं लिया, केवल मॉनिटरिंग की , और राज चलाने का अनुभव प्राप्त किया ?
सन 1999 में बलराम जाखड़ चूरू से लोकसभा चुनाव हार गए ? वे राजस्थान से चुनकर राज्यसभा में जाना चाहते थे ? जाखड़ राजस्थान की राजनीति करना चाहते थे ? यह अशोक गहलोत अहसास था। अशोक जी ने उस वक्त दलित महिला का पत्ता आगे किया ? जमुना बारुपाल एक दलित महिला थी, उनके पिता पन्ना लाल बारूपाल पूर्व में नेहरू जी के समय सांसद रहे थे ? जमुना बारुपाल के नाम को कांग्रेस आला कमान ने झंडी दे दी और बलराम जाखड़ को राज्यसभा में नहीं भेजा जा सका , दलित महिला जमुना बारुपाल राज्यसभा सांसद बन गई ?
कहते हैं कि शतरंज के खेल में प्यादे से वजीर को मात दी जाती है ?
सन 2008 में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सी पी जोशी के नेतृत्व में चुनाव हुआ, सी पी जोशी को यह गुमान हुआ कि उनकी वजह से कांग्रेस की सरकार बनेगी, लेकिन सी पी जोशी नाथद्वारा में एक वोट से चुनाव हार गए, अन्यथा वे अपने आपको मुख्यमंत्री के दावेदार समझ रहे थे ?
सचिन पायलट सन 2009 में लोकसभा सांसद बन गए तो उनको कांग्रेस की केन्द्रीय सरकार में मंत्री बना दिया गया ? कभी अशोक जी से कोई टकराहट नहीं हुई ?
सन 2014 में केन्द्र में भाजपा सरकार बन गई और सचिन पायलट राजस्थान की राजनीति में आ गए ? वे पी सी सी अध्यक्ष बन गए, सन 2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव होने पर कांग्रेस की सरकार बन गई, सचिन पायलट को यह गुमान हो गया कि उनकी वजह से ही राजस्थान में कांग्रेस की जीत हुई है इसलिये उन्हें मुख्य मंत्री बनाया जाना चाहिए ?
सचिन को उप मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन उनकी महत्त्वकांछा बढ़ गई और गहलोत तथा सचिव का राजनैतिक टकराव शुरू हो गया , सन 2020 में राजस्थान के तख्ता पलट का 34 दिन तक प्रयास किया गया ?
पिछले साढ़े चार साल से तख्ता पलट की राजनीति चल रही है ? राजनीति में दुश्मन का दुश्मन दोस्त बन जाता है , कई विरोधी पार्टी के नेता इन दोनों के भी दोस्त बन गए , और यह आपरेशन तख्ता पलट परवान नहीं चढ़ पाया ?
अशोक गहलोत को राजनीति का धुरंधर खिलाड़ी माना जाता है ? तो दूसरी ओर सचिन पायलट ने भी अपने पिता राजेश पायलट, अपने स्वसुर फारुख अब्दुल्ला और साले उमर अब्दुल्ला के साथ रहकर राजनीति की बारीकियों को सीखा है ? अशोक गहलोत राजनीति में मात कैसे खा सकते हैं ? राजस्थान सरकार के सिंहासन को सचिन पायलट को कैसे सौंप सकते हैं ? और दूसरी ओर सचिन पायलट भी हार मानने को तैयार नहीं ? फिर यह टकराहट कैसे खत्म हो सकती है ? एक म्यान में दो तलवार नहीं आ सकती है ?इन दोनों के बीच समझौता कोई नहीं करवा सकता है ? ना रंधावा, ना मलिकार्जुन खड़गे और ना ही राहुल गांधी स्वयं ?इस टकराहट की समाप्ति के दो ही रास्ते हैं कि सचिन पायलट राजस्थान की राजनीति छोड़ केन्द्र की राजनीति करें या कांग्रेस पार्टी को छोड़ दूसरी पार्टी बनाएं या ज्योति राजे सिंधिया की तरह किसी अन्य पार्टी का दामन थाम ले ? अशोक गहलोत ने तो सन 2030 तक राजस्थान की ही सेवा करने का ऐलान कर दिया है ? जानकार लोगों का मानना है कि यदि अशोक गहलोत पर दवाब बनाया गया तो पार्टी में विघटन हो सकता है ? सितंबर 2022 में अशोक गहलोत को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रयास किया गया था जिसे सबने देखा कि किस चतुराई से इस राजनीति को असफल कर दिया गया था ? सन 2023 में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच समझौता होने के कोई चांस नहीं दिखाई देते हैं ? राहुल गांधी को समझदारी से कोई बीच का रास्ता निकालने का ही प्रयास करना होगा अन्यथा इसी आपसी मतभेद और टकराहट के बीच ही राजस्थान में चुनाव करवाना होगा, जिसके लिए कांग्रेस पार्टी को पंजाब की तरह जो भी खमियाजा भुगतना पड़ेगा, उसके लिए तैयार रहना होगा ? यही हकीकत है ?
फकत
मोहब्बत अली तंवर एडवोकेट
वरिष्ठ कांग्रेस लीडर
प्रधान संपादक
आम अवाम
बीकानेर !

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