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दिल्ली सप्ताह भर में मिलेंगे,आरएनआई नंबर,बदल रहे हैं।व्यवस्था अनुराग ठाकुर।

सप्ताह भर में मिलेंगे आरएनआई नंबर, बदल रहे हैं व्यवस्था: अनुराग ठाकुर

जार ने केन्द्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर से पत्रकारों व मीडिया से जुड़े मुद्दों से अवगत कराते हुए इनके निस्तारण की मांग उठाई।

जयपुर। जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (जार) के पदाधिकारियों ने केन्द्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर से मुलाकात की और पत्रकारों हितों से जुडे मुद्दों से अवगत कराते हुए इनके निस्तारण की मांग की। महानगर टाइम्स के रजत महोत्सव में जयपुर आए केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को पत्रकारों से संबंधित ज्ञापन देकर वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट को यथावत रखने, जर्नलिस्ट्स प्रोटेक्शन एक्ट लागू करवाने, मीडिया काउंसिल के गठन, समाचार पत्रों में वेजबोर्ड के प्रावधानों को लागू करवाने, आरएनआई में समाचार पत्रों के पंजीयन, आरएनआई नंबर जारी करने में हो रहे विलम्ब को दूर करने जैसे पत्रकार हितों के मुद्दों से अवगत कराया। केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि आरएनआई,डीएवीपी और पीआईबी में काफी नियम पेचीदा है। अखबार पंजीयन व आरएनआई नम्बर लेने के लिए महीनों लग जाते हैं। इस व्यवस्था को ऑन लाइन करके सुधारा जा रहा है। ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि एक सप्ताह में ही आरएनआई नम्बर मिल सके। लोगों को दिल्ली नहीं आना पड़े। ऐसे आरएनआई नम्बरों को निरस्त करने और नियम बनाने की बात कही, जो सिर्फ कागजों में ही है। ठाकुर ने मीडिया सुधारों के लिए जल्द ही नए कानून व नियम बनाने की कही। रजत महोत्स में भी केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे प्रेस एक्ट को बदला जाएगा। केन्द्रीय मंत्री को ज्ञापन देने के दौरान जार के प्रदेश अध्यक्ष राकेश कुमार शर्मा, प्रदेश महामंत्री संजय सैनी, प्रदेश सचिव भाग सिंह, मुकेश शर्मा, जयपुर जार जिला अध्यक्ष जगदीश शर्मा, संयोजक रामजीलाल शर्मा, रामगोपाल पारीक, मनीष शर्मा, प्रहलाद योगी, जितेन्द्र चौहान, जितेन्द्र शर्मा, विनय शर्मा, नरेन्द्र दातोलिया आदि साथ रहे।

      जार ने इन मांगों से करवाया अवगत

पत्रकारिता पेशे के दौरान पत्रकारों पर जानलेवा हमले और उनकी हत्याओं की घटनाएं काफी होने लगी है। ऐसे में पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पत्रकार सुरक्षा एवं कल्याण कानून लागू करवाना आवश्यक हो गया है। इस कानून में पत्रकारों पर हमले, धमकियों को गैर जमानती अपराध घोषित किए जाए।

पत्रकारों के लिए गठित वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट को खत्म करके नए श्रम कानूनों में समायोजित किया जा रहा है। सरकार का यह कदम सही नहीं है। पत्रकारों व गैर पत्रकारों की आर्थिक सुरक्षा व सम्मान के लिए वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट को यथावत रखा जाए। इसे नए श्रम कानूनों में शामिल नहीं किया जाए। वकीलों की तर्ज पर देश में मीडिया काउंसिल और नेशनल जर्नलिस्ट्स रजिस्ट्रर का गठन किया जाए। ताकि पत्रकारिता को बदनाम करने वाले आपराधिक व्यक्तियों, समूहों पर कानूनी अकुंश लग सके। केन्द्र सरकार ने पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मियों को कानून सम्मत वेतन भत्ते दिए जाने के लिए जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड के माध्यम से कई सिफारिशें की गई थी, लेकिन एकाध समाचार पत्रों को छोड़कर किसी ने भी इन सिफारिशों को लागू नहीं किया जबकि समाचार पत्र वेजबोर्ड लागू करने को लेकर केन्द्र सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं का तो भोग कर रहे हैं,लेकिन पत्रकारों व गैर पत्रकारों को वेजबोर्ड के मुताबिक मानदेय नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी वेजबोर्ड लागू नहीं किया और ना ही मानदेय दे रहे हैं। वेजबोर्ड की मांग करने वाले पत्रकारों को नौकरी से निकाल दिया। राजस्थान में ही राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर समेत अन्य पत्रों से सैकड़ों पत्रकार व गैर पत्रकार कर्मी प्रताडऩा झेल रहे हैं। जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को लागू करवाने के ठोस कदम उठाए जाए,साथ हीजिन समाचार पत्रों ने वेजबोर्ड लागू नहीं किया उन पर विज्ञापन समेत अन्य सुविधाओं पर रोक लगाई जाए। देश के लघु व मझौले समाचार पत्रों (दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक) को आर्थिक संबल व मजबूती देने के लिए एक साल में छह सजावटी विज्ञापन दिए जाने के प्रावधान किए जाए। समाचार पत्रों को मुद्रणालय मशीन व कार्यालय स्थापित करने के लिए कम ब्याज दर पर ऋण दिए जाने और रियायती जमीन आवंटन के प्रावधान किए जाए। केन्द्र सरकार ने डिजिटल पॉलिसी तो लागू कर दी, लेकिन पॉलिसी के प्रावधान इतने कड़े है कि इसके लाभ सिर्फ बड़े समाचार पत्रों, चैनलों की वेबसाइट को मिल रहे हैं। मध्यम व छोटे स्तर पर न्यूज वेबपोर्टल का संचालन करने वाले पत्रकारों को पालिसी का लाभ मिल सके, इसके लिए डिजिटल पॉलिसी के नियम व प्रावधान सरल किए जाए। केन्द्र सरकार की आयुष्मान भारत की तर्ज पर राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारों के लिए मेडिकल क्लेम योजना लागू की जाए। इसमें मीडिया संस्थानों में कार्यरत पत्रकारों और गैर पत्रकारों को शामिल किया जाए।कोरोना काल में भारतीय रेलवे ने सीनियर सिटीजन, पत्रकारों व अन्य को देय सुविधाओं को खत्म कर दिया था। आपसे अनुरोध है कि जिस तरह से सीनियर सिटीजन की सुविधाओं को बहाल किया गया है, उसी तरह से पत्रकारों की सुविधाओं को पुन: बहाल किया जाए। देश भर में अखबारों के टाइटल, रजिस्ट्रेशन, पंजीयन, आरएनआई नंबर आदि की समस्त कार्यवाही दिल्ली स्थित कार्यालय से संचालित होती है। उक्त कार्यवाहियों की व्यवस्था बिगड़ी हुई है। समय पर ना तो आरएनआई नंबर जारी हो रहे हैं और ना ही दिल्ली कार्यालय द्वारा संबंधित को देरी की वजह बताई जाती है। ई-मेल व पत्र व्यवहार का जवाब भी नहीं दिया जाता है। संबंधित पत्रकार व व्यक्ति को दिल्ली बुलाया जाता है, जिससे व्यक्ति पर आर्थिक भार पड़ता है और समय भी व्यर्थ होता है। आपसे अनुरोध है कि अखबारों के टाइटल, आरएनआई नंबर, पंजीयन व रजिस्ट्रेशन जैसे कार्यवाही तय समय में व्यवस्था लागू करवाई जाए। उक्त कार्यवाहियां हर राज्यों के पीआईबी केन्द्रों से शुरु करवाई जाए, जिससे लोगों को दिल्ली की बजाय अपने राज्यों में ही उक्त सुविधा मिल सके। कुछ लोगों द्वारा समाचार पत्रों के टाइटल रजिस्टर्ड करवाकर उन्हें बेचने का गोरखधंधा कर रखा है। ऐसे लोगों के कारण अपने समाचार पत्र शुरु करने वाले संजीदा लोगों व पत्रकारों को टाइटल नहीं मिल पाते हैं। इन्हें लाखों रुपये देकर टाइटल लेने पड़ रहे हैं। गोरखधंधे में लिप्त ऐसे लोग अखबार नहीं छपवाते है, बल्कि एक हजार से कम सालाना की प्रतियां दिखाकर झूठी ऑडिट रिपोर्ट भरकर टाइटल को बेचने के गोरखधंधे में लिप्त हैं। आपसे अनुरोध है कि ऐसे लोगों पर अकुंश लगाने के लिए रजिस्टर्ड टाइटल की नियमित हाजिरी लागू की जाए। एक हजार से कम प्रतियों का प्रावधान खत्म किया जाए। साथ ही आरएनआई द्वारा दो या दो से अधिक टाइटल रखने वालों की चैकिंग करवाई जाए, जिससे टाइटल खरीद-फरोख्त का गोरखधंधा करने वालों की पहचान हो सकेगी।

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