मंत्र सिद्धि लक्ष्य साधना एव सम्रद्धि का अचूक पर्व दीपोत्सव कालरात्रि दीपावली जो गहन अमावश्या के घने अंधकार को चीर कर नवीन रोशनी के पसराव का प्रतिक है
आईरा वार्ता बीकानेर मंत्र सिद्धि लक्ष्य साधना एव सम्रद्धि का अचूक पर्व दीपोत्सव कालरात्रि दीपावली जो गहन अमावश्या के घने अंधकार को चीर कर नवीन रोशनी के पसराव का प्रतिक है। महाकाल रात्रि घनघोर अंधेरे से मुक्त इस काली राम के अंधेरे को मिटाने में नन्हें दीपक बेहद कारगार साबित होते है। वर्षों वैदीक पौराणिक काप से हम इस परम्परा का निर्वहन करते आ रहे है। मानवीय प्रयत्नों का आध्यात्मिक सच्चाइयों के साथ निष्ठा से जुङाव यहां दिगदर्शित होता है। हम परंपरा से दीपावली मनाते है, असको हम विभिन्न कारणो से सर्वोच्च प्राथमिकता भी देते है। क्योंकी इसका जुङाव भौतिक उन्नति एंव संसाधनो के विकास के साथ है। वास्तव में इसे आध्यात्मिक तौर पर वैज्ञानिक विश्लेषणात्मक अंदाज प्राप्त है। भाव की भावकी रात्रि को अमावश्या होती है। इस अमावश्या के दिन आकाश एंव सौरमंडल की स्थिति उर्जामय रहती है, और समस्त ग्रहो की उष्मा सकारात्मक अंदाज में प्रवाहित होती है. ऐसे में यह कालरात्रि तपस्या, तांत्रिक अनुष्ठान, मंत्र सिद्धि एंव लक्ष्य साधना के लिए श्रेष्ठ कही गयी है। दीपावली के दिन धरती पर जलते तिल्ली के तेल में नन्हे दीपकों, उनकी 9 लौ से प्रकाशित रोशनी और रूई कर बाती के माध्यम से तिल्ली के तेल से निकलती उष्मा से आकाशमंडल में अनोखी सकारात्मक उर्जा का संचार हो उठता है। हालांकी यह अद्भुत आश्चर्य है कि हमारी भारतीय संस्कृति में बाकायदा निधान होने के बावजूद हम तिल्ली के तेल की दीपो की प्रथा शनै शनै कम किए जा रहें, यह भूल गए है कि तिल्ली के तेल की उष्मा से वस्या की रात्रि कतिपय आकेशित होती है औरऔर शैतानी ताकतों पर दैवीय ताकतो का नियंत्रण हो प्राप्त हो जाता है। ताराच्छारित गहन काली रात्रि भरा आकाश और उसे पृथ्वी से निहारते टिमटिमाते लाखो करोङो अश्को झिलमिलाते दीपक, एक अनूठा वातावरण कायम करते है । हमारे वेद पुराण एंव समस्त शास्त्र उपनिषद इस बात की प्रमाणिक गवाही देते है कि इस व्यवस्थित माहौल में तपस्वियों की तपस्या परवान चढती है, गुरू मंत्र सिद्ध हो उठते है, तांत्रिक मांत्रिक साधनाएं सहज ही सफल व फलीभूत हो उठती है, सीरसागर में विराजित भगवान विष्णु एंव समृद्धि तथा सौरव्य की स्वामिनी मां लक्ष्मी मुक्तहातद से कृपा लुटाती है। हमने परंपरागत दीपावली के मायने भरसक बदलने के प्रयास किए है।दीपमाला उत्सव को हमारे स्वार्थो के अनुकूल बना कर जहां हमने प्रकृति को वशीभूत करने की कोशिशे की है, वहीं देवीय व्यकायामों के प्रतिकूल पायदान बना दिए है। धनत्रयोदशी, रूप चतुर्दशी एंव दीपावली के शास्त्रीय मायनो को जानभूझकर विग्रहात्मक श्रेणी में हम ले गए है। वास्तव में धनतेरस को आरोग्य प्रदाता भगवान श्री धनवन्तरी की उपासना, पूजन करके सांयकाल को यम के निमित दीपदान करने का विधान होता है, लेकिन भगवान धनवन्तरी का पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन तक नियत से नही किया जाता, यम के प्रति संकल्प लेकर दीपदान करने की बात बड़ी संख्या में हमारे लोग भूल गये है। इसी प्रकार रूपचतुर्दर्शी के प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व तिल्ली के तेल की उबटन करने के पश्चात् स्नान का उपवास शास्त्रोक्त सत्य है। इसकी पालना हमारे शहरी एंव ग्रामीण इलाकों में होती दिखाई नही देती है। इसी प्रकार दीपावली का जो संपूर्ण दिन है, वह अपने आप में आध्यात्मिक सकरणाओ एंव ओजिस्वताओं से परिपूर्ण होता है। इस दिन मां लक्ष्मी, गणेश, कुबेर का पूजन समग्र विधि पूर्वक किया जाना भारतीय वैदिक परिकेश की प्रांसगिकता है, इसके बावजूद हम इनकी प्रतिष्ठा, आवासन, धूप, दीप, स्नान, ध्यान आदि की औपचारिकता भी पूरी नही करना चाहते है जबकी प्रत्येक भारतीय की सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए। दीपावली की रात्रि को अतीव शुभ मुहुर्त में सपरिवार पूजा स्थल को साफ सुथरा बनाकर षोडषोपचार पूजन सामग्री से भगवान विष्णु, गणेश, लक्ष्मी, कुबेर, नवग्रह आदि का बाकायदा आहवान, कलश स्थापन आदि करके वित पू हो, तिजोरी, कलम, दवात, बहीखाते आदि की पूजा हो, पौराणिक एंव वैदिक मंत्रो की सस्वार उच्चारित ध्वनियों हों, तब कहीं जाकर हम दीपावली के मूल मायनों को सार्थक कर पाते है। लकीर पीटना, बाजार से रेडीमेड रंगोली ले कर चिपका देना, पोस्टर का पूजन करके मूल समय में ही पूजा की इती श्री कर लेना हमारे लोगो में निरंतर दिखाई देती है, यह वास्तव में कलिकाल की निशानी है, हमें कलयुग के प्रभाव से बचते हुए सुख , समृद्धि, शांति एंव आरोग्य के निमित अमावस्या कालरात्रि के दिन पूजन करना चाहिए। वर्ष वर्षंत परिवार में सुख शांति एंव स्वास्थ्य का भरपूर माहौल रहता है। आश्चर्य की बात है कि हमारे शहरी परिकेश में शनै शनै तिल्ली ल प जलाने का प्रचलन खत्म हो गया है, विंझुन।
की लड़ियों से लाल पीली रंगीन रोशनियां करना चाहते हैं इससे जहां आकाशमंडल को धरातल की जरूरी उष्मा नही मिल पाती, वहीं सौरमंडल का सकारात्मक प्रभाव हम प्राप्त नही कर पाते। मां लक्ष्मी द्वारा प्रदत सुख, समृद्धि, शांति एंव आरोग्य लकीर पीटा कर प्राप्त करना चाहतें है जो किसी सूरत में संभव नही है, वास्तव में हमें हमारी पौराणिक सच्चाइयों को हुबहु स्वीकार करना होगा और आवाहनम, स्थापनम, पूजनम को विधिकत उपयोग में लेना होगा, तभी जाकर मां लक्ष्मी का वास्तविक स्वरूप आर्शीवाद के रूप में हम ले सकेगें। करीबन, साल में एक बार प्राप्त होने वाला यह सुअवसर आलस्य एंव औपचारिकताओं में गंवा देना अनुचित है। भारतीय अस्मिता, उष्मा एंव यातना की स्थापना एंव साधना के लिए इस कालरात्रि दीपावली से अधिक महत्वपूर्ण कोई और नही हो सकता यह सत्य है।
लेखक भवानी आचार्य एम एल ए हाउस बंगला नगर बीकानेर 9413513305