समाज सेवियों एवं सेवाभावी लोगों ने दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाने का लिया संकल्प
समाज सेवियों एवं सेवाभावी लोगों ने दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाने का लिया संकल्प
आईरा अख्तर बीकानेर बीकानेर । दीपों के त्योहार दीपावली के दिन हर घर मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। शास्त्रों में मिट्टी के दीपक को तेज, शौर्य और पराक्रम का भी प्रतीक माना गया है, हालांकि, पिछले दो दशक के दौरान शहर में कृत्रिम लाइटों का क्रेज काफी बढ़ गया है, आधुनिकता की आंधी में हम अपनी पौराणिक परंपरा को छोड़ कर दीपावली पर बिजली की लाइटिंग के साथ तेज ध्वनि वाले पटाखे चलाने लगे हैं। इससे एक तरफ मिट्टी के कारोबार से जुड़े कुम्हारों के घरों में अंधेरा रहने लगा, तो ध्वनि और वायु प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों को अपना कर हमलोगों ने अपनी सांसों को ही खतरे में डाल दिया है। अपनी परंपराओं से दूर होने की वजह से ही कुम्हार समाज अपने पुश्तैनी धंधे से दूर होता जा रहा है, दूसरे रोजगार पर निर्भर होने लगे हैं, वर्तमान में अपनी परंपरा को बरकरार रखने और पर्यावरण बचाने के लिए इस दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाने के प्रति लोगों खास कर बच्चों व युवाओं काे जागरूक करने के लिए शहर के समाजसेवी लोगों के द्वारा पर्यावरण के सुरक्षा के लिए एक अभियान आओ पर्यावरण बचाएं, दीप जलाएं चलाया जा रहा है,
,देश सभी देशवासियों को धनतेरस की बधाई व शुभकामनाएं राजेंद्र बोथरा
इस अभियान के तहत शहर के सेवाभावी एवं समाज सेवी लोग
बीकानेर शहर के प्रमुख अपार्टमेंट, मोहल्ले व अन्य सार्वजनिक स्थानों पर पहुंच रहे हैं व लोगों को आओ पर्यावरण बचाएं दीप जलाएं के तहत मिट्टी के दीये जलाने का संकल्प दिला रहे हैं, इसी अभियान के कड़ी में
शहर के समाजसेवी मनोज कुमार मोदी दिलीप कुमार मोदी बंधुओं एवं अन्य लोगों ने आओ दीप जलाएं पर्यावरण बचाएं कार्यक्रम बाबूलाल रेलवे फाटक पुलिए के निचे स्थित कार्यालय में आयोजित कर लोगों को पर्यावरण बचाने का संकल्प दिलाया ।इस अवसर पर समाज सेवी बंधु मनोज कुमार मोदी दिलीप कुमार मोदी ने बताया कि अब की बार दीपावली पर्व से पहले शहर के कई बुद्धिजीवी, जनप्रतिनिधि, बच्चे व आम लोगों से मिलकर त्यौहार पर सिर्फ मिट्टी का दीपक इस्तेमाल करने का उन्हें संकल्प दिलाया घरों में भी आरती व अन्य धार्मिक कार्यक्रमों में मिट्टी का दीपक जलाने का संदेश दिया। राजेन्द्र सिंह भाटी ने बताया कहा कि पंरपरा व पर्यावरण के संरक्षण के लिए मिट्टी के दीये ही जलाना है, इनसे कोई प्रदूषण भी नहीं होता। जबकि कृत्रिम रोशनी आंखों व त्वचा के लिए हानिकारक होती है। मिट्टी के दीये की रोशनी आंखों को आराम पहुंचाती है। मिट्टी के दीये हमारी संस्कृति का एक अहम अंग हैं। दीपावली पर इसे जलाकर हम अपनी परंपराओं को याद रखते हैं।