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बीकानेर के नेता एक दूसरे की टांग खिंचाई ना करे तो लोकसभा सीट कांग्रेस के खाते में जा सकती है।

भारत में पांच महीने बाद मई 2024 में लोकसभा चुनाव होने की संभावना

आईरा समाचार महासचिव एडवोकेट मोहबत अली तंवर की पार्टी की जीत कैसे हो सकती है, जब कांग्रेस पार्टी के नेता ही एक दूसरे को दिए गए हो मशगूल।
पार्टी कांग्रेस में किसी की भी कोई विचारधारा नहीं हो सकती।
सन 1998 से 2003 के बीच नोखा में रेवंत राम क्रेकेज़ कांग्रेस पार्टी के नेता थे, कहते हैं किसी राजनीतिक विवाद को लेकर नोखा के एक कद्दावर नेता से नहीं बने।

फोटो,बधाई,के,,तोर,पर,लगाई,गई,है।
सन 2003 के चुनाव में कांग्रेस ने नोखा से टिकटें दी और बीजेपी से गोविंद राम चौहान उम्मीदवार बने, लेकिन चुनाव में रेवंत राम मेघवाल की हार हुई, जनता में चर्चा हुई कि कांग्रेस के ही स्थानीय नेताओं ने वोट दिया।
राजस्थान विधानसभा में नोखा के दिग्गज कांग्रेस नेताओं पर बीजेपी नेताओं पर मदद करने के आरोप लगे थे, जिन्हें आज भी विधानसभा के कुछ मिनटों में देखा जा सकता है।
इसी समयावधि में विधानसभा और विधानमंडल क्षेत्र में परिसीमन हो गया, सन 2009 में सैंडविच की सात सीटों के अलावा अनूपगढ़ को भी इसमें शामिल कर नया बजट बनाया गया, जो रिजर्व भी बनाया गया।
सन 2009 में कांग्रेस पार्टी ने रेवंत राम मंदिर को टिकट दिया और बीजेपी ने पूर्व ए एस अर्जुन राम मेघवाल को टिकट दिया, आज कांग्रेस पार्टी के बड़े कद्दावर नेता गोविंद राम चौहान ने बीजेपी ने चुनाव के मैदान में टिकटें छोड़ दीं और 
पार्टी कांग्रेस केनेताओं ने जाम कर अंदर घाट करने और कांग्रेस के रिश्तों में तेल पिलाने के काम की खूब चर्चा की,
बहुत आश्चर्य की बात है कि 2009 के शुरुआती चुनाव में केवल 41.91 प्रतिशत ही वोटिंग हुई थी और नोखा विधानसभा क्षेत्र में इतनी ही नहीं तो केवल 24.88 प्रतिशत ही वोट हुई थी।
बीजेपी के राम अर्जुन मेघवाल को 2,44,537 वोट मिले, कांग्रेस के रेवंत राम को 2,24,962 वोट मिले और 19,575 वोट मिले चुनाव हारे
गणित के समर्थकों के निशान से चुनाव लड़ रहे गोविंद नेता राम चौहान को 39,306 वोट मिले, एक सी पीएम के प्रतिनिधि पवन कुमार दुग्गल को भी 36,555 वोट मिले?
क्या तब हो गया जब नोखा में 24.88 प्रतिशत के वोट ही कास्ट हो पाए? लेकिन कांग्रेस पार्टी के आला कमान ने किसी से कोई सवाल नहीं किया, किसी को भी नोटिस जारी नहीं किया गया
सन 2014 के आम चुनाव में इस सीट से दलित समाज के कद्दावर नेता मास्टर भंवर लाल मेघवाल चुनाव चाहते थे लेकिन प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने टिकट दिए ना डेके गंगानगर के शंकर पल्लाद को टिकटें नीचे।
इस चुनाव में भी कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने कोई सीट नहीं ली, जाम कर अंदरखाते में धावा बोल दिया और ये कि कांग्रेस पार्टी के प्रत्यासी शंकर पेज के 3,08,079 से शर्मनाक हार हुई? चुनाव में शंकर पाबोलिज़ को भारी आर्थिक नुक्सान भी दिया गया।
सन 2019 में पूर्व महासचिव मदन गोपाल मेघवाल कांग्रेस के टिकट मैदान में फिर से चले गए, बीजेपी से अर्जुन राम मेघवाल चुनाव मैदान में थे, कांग्रेस पार्टी के स्थानीय नेताओं द्वारा कांग्रेस पार्टी के रिश्तेदारों में तेल भरने के अपने शुभ कार्य को अंजाम दिया गया।
इस चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी के मनोहर गोपाल मेघवाल अकेले ही चले गए।
कांग्रेस के सभी आठ स्थानों के क्षत्रपों द्वारा चुनाव में कोई रुचि नहीं ली गई। ये कैसी बात है कि सिर्फ छह महीने पहले हुए चुनाव में पश्चिम से डॉक्टर डी कल्ला करीब छह हजार से ज्यादा वोट से जीते थे और पूर्व कांग्रेस पार्टी के समाजवादी लाल झावर करीब 7,000 वोट से जीते थे, यानि पूर्व और पश्चिम दोनों राज्यों को कोना जाए तो कांग्रेस को बीजेपी की तुलना में केवल 1,000 वोट ही कम मिले। बेहद आश्चर्य की बात है कि छह महीने बाद ही कांग्रेस के मदन गोपाल मेघवाल इन दोनों जगहों से करीब 83,000 वोट कम मिले, जबकि अपील पश्चिम के विधायक बी डी कल्ला सरकार में एक पावरफुल मंत्री थे।
काजूवाला विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी के नेता गोविंद राम चौहान को 31,000 से ज्यादा वोट मिले थे, लेकिन छह महीने बाद ही लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार गोपाल मेघवाल को बीजेपी से करीब 19,000 वोट कम मिले।
एक दिलचस्प बात यह है कि चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी की वोटिंग जारी हो रही है। कांग्रेस नेताओं का पुत्र प्रधान बन गया, क्या पत्नी, बेटी, सास और अन्य एबीए सभी चुनावी जीत नहीं? बाद में कांग्रेस सरकार ने खुश मंत्री भी बनाए और संगठन में भी बड़ी जिम्मेदारी दी। प्रत्यायी कांग्रेसी मदन गोपाल मेघवाल को विश्राम स्थल पर भी बेहद कम वोट मिले, कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हुए चुनाव प्रचार किया।
चुनाव से तीन दिन पहले पूर्व विधानसभा के नेताओं द्वारा एक कार्यकर्ता से मुलाकात की गई, और यह कांग्रेस का चुनाव प्रचार भी किया गया। यह आ रहा है कि मदन गोपाल मेघवाल के भारी-भरकम गोलों के बारे में नीचे दिए गए निर्देशों में लिखा है कि कांग्रेस के आलाकमान ने हार की समीक्षा भी नहीं की? अभी 25 मार्च को हुए चुनाव में हालांकि आठ में से बीजेपी के छह नेता जीत गए और देखा गया कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने एक-दूसरे को धोखा देने का काम किया है। लेकिन यह भी सच है कि अगर कांग्रेस पार्टी के आठों विधानसभा क्षेत्रों के नेता ईमानदारी से कांग्रेस पार्टी के लिए काम करते हैं तो कांग्रेस पार्टी को सन 2024 में न्यूनतम मिल सकता है? मई के बाद 2024 में फकीट का अंतिम संस्करण पांच महीने में चुनाव होने की संभावना है। कांग्रेस प्रत्यासी की जीत कैसे हो सकती है, जब कांग्रेस पार्टी के नेता एक दूसरे को दिए गए हो मशगूल? पार्टी कांग्रेस में किसी की भी कोई भलाई नहीं हो सकती? :—— सन 1998 से 2003 के बीच नोखा में रेवंत राम क्रेज़ कांग्रेस पार्टी के नेता थे, कहते हैं क्या किसी राजनीतिक विवाद को लेकर नोखा के एक कद्दावर नेता से नहीं बने? सन 2003 के चुनाव में कांग्रेस ने नोखा से टिकटें दी और बीजेपी से गोविंद राम चौहान उम्मीदवार बने, लेकिन चुनाव में रेवंत राम मेघवाल की हार हुई, जनता में चर्चा हुई कि कांग्रेस के ही स्थानीय नेताओं ने वोट दिया।
राजस्थान विधानसभा में नोखा के दिग्गज कांग्रेस नेताओं पर बीजेपी नेताओं पर मदद करने के आरोप लगे थे, जिन्हें आज भी विधानसभा के कुछ मिनटों में देखा जा सकता है।
इसी समयावधि में विधानसभा और विधानमंडल क्षेत्र में परिसीमन हो गया, सन 2009 में सैंडविच की सात सीटों के अलावा अनूपगढ़ को भी इसमें शामिल कर नया बजट बनाया गया, जो रिजर्व भी बनाया गया।
सन 2009 में कांग्रेस पार्टी ने रेवंत राम मंदिर को टिकट दिया और बीजेपी ने पूर्व ए एस अर्जुन राम मेघवाल को टिकट दिया, आज कांग्रेस पार्टी के बड़े कद्दावर नेता गोविंद राम चौहान ने बीजेपी ने चुनाव के मैदान में टिकटें छोड़ दीं?
पार्टी कांग्रेस के नेताओं द्वारा जाम कर अंदर घाट करने और कांग्रेस के रिश्तों में तेल पिलाने के काम की खूब चर्चा हुई?
बड़े आश्चर्य की बात है कि 2009 के शुरुआती चुनाव में केवल 41.91 प्रतिशत ही वोटिंग हुई थी और नोखा विधानसभा क्षेत्र में इतनी ही नहीं तो केवल 24.88 प्रतिशत ही वोटिंग हुई थी।
बीजेपी के राम अर्जुन मेघवाल को 2,44,537 वोट मिले, कांग्रेस के रेवंत राम को 2,24,962 वोट मिले और उन्हें 19,575 वोट मिले।
गणित के हाथी के निशान से चुनाव लड़ रहे नेता गोविंद राम चौहान को 39,306 वोट मिले, एक सीपीएम के प्रतिनिधि पवन कुमार दुग्गल को भी 36,555 वोट मिले?
क्या तब हो गया जब नोखा में 24.88 प्रतिशत के वोट ही कास्ट हो पाए? लेकिन कांग्रेस पार्टी के आला कमान ने किसी से कोई सवाल नहीं किया, किसी को भी नोटिस जारी नहीं किया। सन 2014 के आम चुनाव में इस सीट से दलित समाज के कद्दावर नेता मास्टर भंवर लाल मेघवाल चुनाव चाहते थे लेकिन प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने गंगानगर के शंकर पल्लाद को टिकट दे दिए। इस चुनाव में भी कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने कोई सीट नहीं ली, जाम कर अंदरखाते में धावा बोल दिया और ये कि कांग्रेस पार्टी के प्रत्यासी शंकर पेज के 3,08,079 से शर्मनाक हार हुई? चुनाव में शंकर पाबोलिज़ को भारी आर्थिक नुक्सान भी दिया गया। सन 2019 में पूर्व महासचिव मदन गोपाल मेघवाल कांग्रेस के टिकट मैदान में फिर से चले गए, बीजेपी से अर्जुन राम मेघवाल चुनाव मैदान में थे, कांग्रेस पार्टी के स्थानीय नेताओं द्वारा कांग्रेस पार्टी के रिश्तेदारों में तेल भरने के अपने शुभ कार्य को अंजाम दिया गया। इस चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी के मनोहर गोपाल मेघवाल अकेले ही चले गए। कांग्रेस के सभी आठ स्थानों के क्षत्रपों द्वारा चुनाव में कोई रुचि नहीं ली गई।
ये कैसी बात है कि सिर्फ छह महीने पहले हुए चुनाव में पश्चिम से डॉक्टर बी डी कल्ला करीब छह हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे और पूर्व कांग्रेस पार्टी के समाजवादी लाल झावर की करीब 7,000 वोट से जीत हुई थी, यानी पूर्व और पश्चिम दोनों राज्यों को वोट मिले तो कांग्रेस को बीजेपी की तुलना में केवल 1,000 वोट ही कम मिले?
बेहद आश्चर्य की बात है कि छह महीने बाद ही कांग्रेस के मदन गोपाल मेघवाल इन दोनों जगहों से करीब 83,000 वोट कम मिले, जबकि अपील पश्चिम के विधायक बी डी कल्ला सरकार में एक पावरफुल मंत्री थे।काजूवाला विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी के नेता गोविंद राम चौहान 31,000 से ज्यादा वोट से जीते थे लेकिन छह महीने बाद ही लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार गोपाल मेघवाल को बीजेपी से करीब 19,000 वोट कम मिले?
एक दिलचस्प बात यह है कि चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी की वोटिंग जारी हो रही है।
कांग्रेस नेताओं का पुत्र प्रधान बन गया, क्या पत्नी, बेटी, सास और अन्य एबीए सभी चुनावी जीत नहीं? बाद में कांग्रेस सरकार ने खुश मंत्री भी बनाए और संगठन में भी बड़ी जिम्मेदारी दी। प्रत्याय कांग्रेसी मदन गोपाल मेघवाल को विश्राम स्थल पर भी बेहद कम वोट मिले, कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हुए चुनाव प्रचार किया?
चुनाव से तीन दिन पहले पूर्व विधानसभा के नेताओं द्वारा एक कार्यकर्ता से मुलाकात की गई, और यह कांग्रेस का चुनाव प्रचार भी किया गया। नतीजों में यह आ रहा है कि मदन गोपाल मेघवाल के भारी-भरकम गोलों के बारे में नीचे दिए गए निर्देशों में बताया गया है कि कांग्रेस आलाकमान ने हार की समीक्षा भी नहीं की। अभी 25 मार्च को हुए चुनाव में हालांकि आठ में से बीजेपी के छह नेता जीत गए और देखा गया कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने एक-दूसरे को धोखा देने का काम किया है। लेकिन यह भी सच है कि अगर कांग्रेस पार्टी के आठों जिलों के नेता ईमानदारी से कांग्रेस पार्टी के लिए काम करते हैं तो कांग्रेस पार्टी को 2024 में न्यूनतम मिल सकता है। फ़क़त डिविज़न के नायक।

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